राज्यपालों की तरफ से भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लें राष्ट्रपति, SC ने पहली बार दिया निर्देश

0 131

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति को निर्देश देते हुए कहा है कि राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए। शीर्ष न्यायालय का यह फैसला मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा लंबित विधेयकों पर स्वीकृति न देने के फैसले को खारिज करते हुए आया। यह आदेश शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया।

राष्ट्रपति के पास “पॉकेट वीटो” नहीं हैः कोर्ट

तमिलनाडु मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किए गए कार्यों का निर्वहन न्यायिक समीक्षा के लिए उत्तरदायी है। अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब राज्यपाल द्वारा कोई विधेयक सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति यह घोषित करेगा कि या तो वह विधेयक पर अपनी सहमति देता है या फिर अपनी सहमति नहीं दे रहा। हालांकि, संविधान में कोई समय-सीमा प्रदान नहीं की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित किया कि राष्ट्रपति के पास “पॉकेट वीटो” नहीं है और उसे या तो सहमति देनी होती है या उसे रोकना होता है।

निर्धारित समय में किया जाना चाहिए शक्तियों का प्रयोग

कोर्ट ने कहा कि कानून की स्थिति यह है कि जहां किसी क़ानून के तहत किसी शक्ति के प्रयोग के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, वहां भी इसे उचित समय के भीतर प्रयोग किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों का प्रयोग कानून के इस सामान्य सिद्धांत से मुक्त नहीं कहा जा सकता है।

दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि तीन महीने की अवधि से अधिक देरी होने पर उचित कारण दर्ज किए जाने चाहिए और संबंधित राज्य को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, “हम यह निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है। राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति न देने को चुनौती दी जा सकती है।

निर्धारित समय सीमा के भीतर कार्रवाई न होने पर कोर्ट जा सकते हैं राज्य

अदालत ने कहा कि समय-सीमा के भीतर कोई कार्रवाई न होने की स्थिति में पीड़ित राज्य अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। यदि कोई विधेयक संवैधानिक वैधता के प्रश्नों के कारण आरक्षित है तो शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया कि कार्यपालिका को अदालतों की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। इसने कहा कि ऐसे प्रश्नों को अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को भेजा जाना चाहिए।

डीएमके सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कही ये बात

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि किसी विधेयक में विशुद्ध रूप से कानूनी मुद्दों से निपटने के दौरान कार्यपालिका के हाथ बंधे होते हैं और केवल संवैधानिक न्यायालयों के पास ही विधेयक की संवैधानिकता के संबंध में अध्ययन करने और सिफारिशें देने का विशेषाधिकार है। शीर्ष अदालत का यह आदेश तब आया जब उसने फैसला सुनाया कि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने डीएमके सरकार द्वारा पारित 10 विधेयकों पर स्वीकृति नहीं दिया था। न्यायालय ने राज्यपालों के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा निर्धारित करते हुए कहा कि निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा का विषय हो सकती है।

 

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.