Taliban Digital blackout: अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के सत्ता में आने के बाद आम लोगों की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। सरकार सख्त इस्लामिक नियम लागू कर रही है, और महिलाओं के अधिकारों पर लगातार अंकुश की खबरें सामने आ रही हैं। इसी बीच देश में एक और बड़ी समस्या देखने को मिली है। सोमवार से पूरे अफगानिस्तान में अचानक डिजिटल ब्लैकआउट लागू कर दिया गया। तालिबान ने इंटरनेट सेवाओं को पूरी तरह बंद करने का आदेश दिया, और उसके बाद मोबाइल नेटवर्क भी क्रमशः बंद होते गए।
काबुल और प्रांतीय शहरों के लोग न केवल इंटरनेट से कट गए हैं, बल्कि फोन कॉल भी करना मुश्किल हो गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार पहले फाइबर-ऑप्टिक इंटरनेट बंद हुआ, फिर थोड़े समय के लिए मोबाइल डेटा चला, लेकिन जल्द ही मोबाइल टावर भी काम करना बंद कर गए। इस वजह से अफगानिस्तान अब पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कट चुका है, जिससे परिवारों, व्यापारियों और राहत संगठनों के लिए लोगों से संपर्क करना लगभग असंभव हो गया है।
इंटरनेट और मोबाइल सेवा ठप
पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, काबुल, हेरात, मजार-ए-शरीफ और उरुजगान समेत कई प्रमुख शहरों में अब किसी भी तरह का इंटरनेट या मोबाइल कनेक्शन काम नहीं कर रहा है। यह पहली बार है जब पूरे देश में दोनों सेवाओं को एक साथ बंद किया गया है।

तालिबान ने जारी किया सख्त निर्देश
स्थानीय इंटरनेट कंपनियों ने बताया कि यह ब्लैकआउट तालिबान के आदेश पर लागू किया गया है। इससे पहले भी कुछ क्षेत्रों में फाइबर-ऑप्टिक इंटरनेट को अवरुद्ध किया जाता रहा है, लेकिन मोबाइल सेवाएं सामान्य तौर पर चलती थीं, हालांकि बहुत धीमी और निगरानी में रहती थीं। इस बार तालिबान ने दोनों सेवाओं को पूरी तरह रोक दिया है।
राहत संगठनों की चिंता
अफगानिस्तान में राहत और मानवीय सहायता देने वाले संगठन अब और अधिक मुश्किल स्थिति का सामना कर रहे हैं। देश पहले से ही एक गंभीर मानवीय संकट से जूझ रहा है, और अब बाहरी मदद पहुंचाने में भी अड़चनें आ रही हैं। एनजीओ और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का कहना है कि जब तक इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क बहाल नहीं होता तब तक जमीन पर हालात का सही आकलन करना आसान नहीं होगा।
ब्लैकआउट क्यों लगाया गया?
तालिबान की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन माना जा रहा है कि यह कदम राजनीतिक नियंत्रण बनाए रखने और बड़े विरोध प्रदर्शनों को रोकने के उद्देश्य से उठाया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं को बंद करना तालिबान का तरीका है देश में उठ रही आवाजों को दबाने का।