नई दिल्ली: हिंदू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा वर्ष में एक बार आने वाला ऐसा विशेष दिन होता है जब चंद्र देव अपनी सभी 16 कलाओं से युक्त होकर आकाश में विराजमान होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों से पृथ्वी पर अमृत की वर्षा होती है, जो न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से बल्कि आयुर्वेदिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। यही कारण है कि इस पूर्णिमा का महत्व अन्य पूर्णिमाओं की तुलना में कहीं अधिक होता है। इस दिन श्रद्धालु रात्रि में खुले आकाश के नीचे खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं और अगले दिन उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
इस वर्ष शरद पूर्णिमा की तिथि को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि इसे 6 अक्टूबर को मनाया जाए या 7 अक्टूबर को। पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से आरंभ हो रही है और इसका समापन 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर होगा। ज्योतिषीय नियमों के अनुसार, पूर्णिमा व्रत, पूजा और रात्रिकालीन चंद्रमा दर्शन उसी दिन किए जाते हैं जब चंद्रमा रात को आकाश में अपने पूर्ण स्वरूप में दिखाई देता है। इसलिए यह पूर्णिमा 6 अक्टूबर की रात को ही मनाई जाएगी, जब चंद्रमा की रोशनी सबसे प्रबल मानी जाती है। शरद पूर्णिमा का उल्लेख अनेक पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इस रात वे ऐरावत हाथी पर सवार होकर धरती पर भ्रमण करती हैं और जागरण कर रहे भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इसलिए इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है — जिसका अर्थ होता है ‘कौन जाग रहा है’। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस रात जागकर देवी लक्ष्मी का स्मरण करता है, उसके घर में समृद्धि का वास होता है।

रास पूर्णिमा के रूप में भी इस दिन की बड़ी महत्ता है। मान्यता है कि वृंदावन में इसी रात श्रीकृष्ण ने रास रचाया था और गोपियों संग दिव्य लीला का आयोजन हुआ था। इस दृष्टि से यह तिथि प्रेम, भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक भी मानी जाती है। इस अवसर पर खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखना एक विशेष परंपरा है। यह खीर तुलसी पत्ते के साथ बनाकर खुले आकाश के नीचे रखी जाती है ताकि चंद्र किरणों में समाहित औषधीय तत्व उसमें प्रवेश कर सकें। अगली सुबह यह खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है, जिससे न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है बल्कि मानसिक शांति भी मिलती है। आयुर्वेद के अनुसार भी चंद्रमा की रोशनी से प्रभावित दूध और चावल पाचन शक्ति को मजबूत करते हैं।
शरद पूर्णिमा की इस पावन रात में भक्तगण लक्ष्मी-नारायण की विधिवत पूजा कर धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं। दीप जलाकर रात्रि जागरण करने की परंपरा इसीलिए है ताकि माता लक्ष्मी की कृपा घर में बनी रहे। इस प्रकार, 2025 में शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर को पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाएगी। यह दिन केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था, चिकित्सा विज्ञान और आध्यात्मिक साधना का एक अद्भुत संगम है जो भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।