दिल्ली हाई कोर्ट में दायर हुई अपील, PM मोदी की डिग्री मामले में नया मोड़

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नई दिल्‍ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता को सार्वजनिक(Public) करने का मामला एकबार फिर अदालत में पहुंच गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ में एक अपील दायर की गई है, जिसमें सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें उन्होंने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के 2016 के उस निर्देश को रद्द कर दिया था, जिसमें उसने पीएम मोदी की शैक्षणिक योग्यता की जानकारी को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। अदालत ने इसे व्यक्तिगत जानकारी बताते हुए इसके सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी थी, साथ ही स्पष्ट किया था कि विश्वविद्यालय और छात्र के बीच का संबंध एक ऐसा संबंध होता है, जो कि विश्वास और गोपनीयता पर आधारित होता है, और किसी तीसरे पक्ष को इसकी जानकारी देना इस जिम्मेदारी का उल्लंघन होगा।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। यह अपील आम आदमी पार्टी (AAP) नेता संजय सिंह, RTI कार्यकर्ता नीरज शर्मा और अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद की तरफ से दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं ने जस्टिस सचिन दत्ता के 25 अगस्त के दिए उस आदेश पर सवाल उठाया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि डिग्री और किसी परीक्षा में हासिल अंक जैसी शैक्षणिक योग्यताएं सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(J) के तहत व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में आती हैं और जब तक इनमें व्यापक जनहित न हो जाए, इनका खुलासा नहीं किया जा सकता।

इस आदेश को देते हुए जस्टिस दत्ता ने CIC के दिसंबर 2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय को दिए उस निर्देश को रद्द कर दिया था, जिसमें उसने विवि को 1978 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की अनुमति देने का निर्देश दिया था। बता दें कि 1978 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी बीए की डिग्री पूरी की थी और याचिकाकर्ता उसी डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं।

अपने फैसले में जस्टिस दत्ता ने कहा था कि ‘कुछ ऐसा जो जनता के लिए रुचिकर हो’ वह ‘कुछ ऐसा जो सार्वजनिक हित में हो’ से बिल्कुल अलग है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि किसी व्यक्ति के निजी विवरणों के बारे में जनता की जिज्ञासा के लिए गोपनीयता की वैधानिक सुरक्षा को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

अपने आदेश में न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि विश्वविद्यालय और छात्र के बीच का संबंध एक प्रत्ययी संबंध है, जो विश्वास और गोपनीयता पर आधारित होता है, और किसी तीसरे पक्ष को किया गया अंकों या डिग्रियों का खुलासा, इस जिम्मेदारी का उल्लंघन होगा।

उच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रों के शैक्षणिक रिकॉर्ड के संरक्षक के रूप में कार्य करता है, जिन्हें गोपनीयता की वैध अपेक्षा के तहत बनाए रखा जाता है। न्यायालय ने कहा कि ‘यह ढांचा किसी तीसरे पक्ष को अंकों या ग्रेडों के प्रकटीकरण की अनुमति नहीं देता है, और इस बात पर जोर दिया कि गोपनीयता ऐसे संबंधों का अभिन्न अंग है।’

मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि इस तरह के खुलासे की अनुमति देने से राजनीति से प्रेरित या प्रचार-प्रेरित आरटीआई आवेदनों की संख्या बढ़ जाएगी, जो आरटीआई अधिनियम की मंशा के विपरीत है। उन्होंने कहा था कि जरूरत पड़ने पर ऐसे रिकॉर्ड अदालत में पेश किए जा सकते हैं, लेकिन उन्हें सार्वजनिक करने से आपसी विश्वास का सिद्धांत विफल हो जाएगा।

बता दें कि यह मामला साल 2016 में दायर उन RTI आवेदनों से उत्पन्न हुआ था, जिसके कारण केंद्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था। इस आदेश पर जनवरी 2017 में उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी और बाद में अगस्त 2024 में एकल न्यायाधीश ने इसे रद्द कर दिया था।

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