बेटे का फर्ज निभाकर बेटी ने पेश की अनूठी मिसाल, पिता को दी मुखाग्नि; मुंडन करवाकर तोड़ी सदियों पुरानी रूढ़ियां

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भुवनेश्वर: ओडिशा के सरकना गांव में एक बेटी ने समाज की पुरानी मान्यताओं को पीछे छोड़ते हुए वह कर दिखाया, जिसे अब तक केवल बेटों का विशेषाधिकार माना जाता था। दीप्तिलता नाम की इस साहसी बेटी ने न केवल अपने पिता के निधन के बाद उनकी चिता को मुखाग्नि दी, बल्कि शोक की सभी रस्में भी पूरी विधि-विधान और श्रद्धा के साथ निभाईं। पूरे क्षेत्र में इस घटना की खूब चर्चा हो रही है और लोग इसे बदलती सामाजिक सोच का एक सशक्त और सकारात्मक संदेश मान रहे हैं।

बीती एक दिसंबर को पिता का साया सिर से उठने के बाद दीप्तिलता ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। परिवार में कोई बेटा नहीं होने के कारण पिता के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उन पर आ गई, जिसे उन्होंने बिना किसी झिझक के स्वीकार किया। दीप्तिलता ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार पिता का दाह संस्कार किया। इतना ही नहीं, अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने शोक की हर पारंपरिक रस्म को पूरी निष्ठा से निभाया। दसवें दिन उन्होंने अपना मुंडन संस्कार भी करवाया, जो आमतौर पर पारंपरिक रूप से केवल बेटों द्वारा ही किया जाता है। उनके इस कदम ने यह साबित कर दिया कि सेवा और कर्तव्य के मामले में बेटियां बेटों से किसी भी तरह कम नहीं हैं।

दीप्तिलता दो बहनों में छोटी हैं और अपने माता-पिता के साथ ही रहती थीं, जबकि उनकी बड़ी बहन प्रीति शादी के बाद अपने ससुराल में रहती हैं। दीप्तिलता के इस साहसिक फैसले पर गांव में किसी भी तरह का विरोध देखने को नहीं मिला, बल्कि इसके विपरीत ग्रामीणों और पड़ोसियों ने उनकी हिम्मत और पिता के प्रति समर्पण की जमकर सराहना की। उनकी बड़ी बहन प्रीति और जीजा ने भी दीप्तिलता के फैसले पर गर्व जताया है। उनका कहना है कि जब परिवार में बेटा न हो, तब भी बेटी हर जिम्मेदारी निभाने में सक्षम है। दीप्तिलता ने अपने कर्मों से पूरे समाज को यह संदेश दिया है कि बेटियां अंतिम समय तक अपने माता-पिता का सहारा बन सकती हैं।

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