CM योगी आदित्यनाथ पर बनी फिल्म ‘अजेय’ को बॉम्बे हाई कोर्ट से मिली हरी झंडी, सेंसर बोर्ड की आपत्तियां हुईं खारिज

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मुंबई: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बनी फिल्म ‘अजेय’ को आखिरकार बॉम्बे हाई कोर्ट से रिलीज की अनुमति मिल गई है। सेंसर बोर्ड (CBFC) द्वारा सर्टिफिकेट देने से इंकार करने के बाद फिल्म के मेकर्स ने कोर्ट का रुख किया था। इस मामले में हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने CBFC को जो निर्देश दिए उनका पालन नहीं करने की वजह से अदालत ने कहा कि अब वे खुद इस फिल्म को देखेंगे। 21 अगस्त को फिल्म देखने के बाद अब आगे की सुनवाई हुई। बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने सुनवाई की।

कोर्ट ने कहा कि हमने फिल्म देखी, लेकिन इसमें कोई परेशानी नहीं है। कोर्ट ने डिस्क्लेमर के बारे में पूछा, फिल्म के मेकर्स ने पेश किया। कोर्ट ने CBFC के वकील से पूछा, क्या आपने फिल्म देखी? उन्होंने ना कहा, तो कोर्ट ने पूछा कि देखनी चाहिए थी, बहस आसान होती। कोर्ट ने सबमिट किए डिस्क्लेमर को पहले से बेहतर बताया, क्योंकि इसमें लिखा है कि फिल्म एक ‘सिनेमैटिक अडॉप्शन’ है।

“आपको 21 जगहों पर ऑब्जेक्शन है”

कोर्ट ने सीबीएफसी से भी कहा कि कोई परेशानी है तो आप भी बताएं। कोर्ट ने कहा कि हम इस फिल्म को रिलीज करने का आदेश दे दे, आपको 21 जगहों पर ऑब्जेक्शन है… कोई स्पेसिफिक ऑब्जेक्शन है?  कोर्ट ने सीबीएफसी से पूछा कि आप ही बताए कि फिल्म ने कहां नियम का उल्लंघन किया है? सीबीएफसी अपने ऑब्जेक्शन बताया… कोर्ट ने कहा कि हमें जो भी ऑब्जेक्शन वाले प्वाइंट बताए गए थे, हमने वह सब देखे।

CBFC ने कहा कि इस फिल्म से योगी आदित्यनाथ की छवि खराब हो सकती है। कोर्ट ने पूछा कैसे आपने बुक पढ़ी? सीबीएफसी के वकील ने कहा, नहीं पढ़ी है। कोर्ट ने कहा कि उन्होंने खुद बुक को प्रमोट किया है। सीबीएफसी ने कहा कि डीसेंसी का भी प्वाइंट है, कोर्ट ने फिर कहा कि नहीं है, कोई परेशानी।

मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल केस का उदाहरण

सीबीएफसी के वकील फिल्म को सर्टिफिकेट देने की गाइडलाइन कोर्ट को बताए, लेकिन कई प्वाइंट पर कोर्ट सीबीएफसी से सहमत नहीं हुआ। सीबीएफसी ने मद्रास हाई कोर्ट में दाखिल एक केस का उदाहरण दिया, जिसमें एक इंडिविजुअल की छवि खराब हुई। सीबीएफसी डिफेमेशन की बात बार-बार रख रहा था, लेकिन कोर्ट सहमत नहीं हुआ। सीबीएफसी ने अपने सबमीशन में कहा कि फिल्म में जो प्वाइंट ओपिनियन बना रहे हैं, उन्हें हटा दिया जाए। अगर सीबीएफसी के एक्सपर्ट ने कुछ प्वाइंट बताए हैं, जिसके आधार पर उन्हें शामिल किया जाए, इस कोर्ट ने कहा यह आपका ओपिनियन है।

कोर्ट ने कहा कि अलग प्लेटफॉर्म पर जो दिखाया जाता है, उसके मुकाबले फिल्म में कुछ भी नहीं है। फिल्म के निर्माताओं ने सीबीएफसी के मद्रास कोर्ट वाले उदाहरण पर बहस की और कहा कि इस केस में परिवार सीधा आया था। निर्माताओं ने कहा कि यह एक फंडामेंटल राइट है कि वह फिल्म बताएं। कोर्ट ने निर्माताओं के पिटिशन को वैध माना और कहा कि अब यह फिल्म रिलीज की जाएगी। कोर्ट के आदेश के बाद निर्माता आगे ऑर्डर कॉपी लेकर फिल्म की रिलीज डेट निर्धारित करेंगे।

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