धर्मेंद्र प्रधान बोले- संसद में दिए गए बयान पर कायम हूं, शेयर किया तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग का सहमति पत्र, CM स्टालिन से पूछा सवाल

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नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के कार्यान्वयन पर जारी विवाद के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से आग्रह किया कि वह राजनीतिक लाभ से ज्यादा तमिलनाडु के बच्चों के हितों को प्राथमिकता दें। केंद्रीय मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है, ”कल डीएमके सांसदों और मुख्यमंत्री स्टालिन ने मुझ पर पीएम श्री स्कूलों की स्थापना के लिए तमिलनाडु की सहमति के बारे में संसद को गुमराह करने का आरोप लगाया। मैं संसद में दिए गए अपने बयान पर कायम हूं और तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग का 15 मार्च 2024 का सहमति पत्र शेयर कर रहा हूं।”

केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने पूछा- NEP पर रुख में अचानक यह बदलाव क्यों?
उन्होंने कहा, ”डीएमके सांसद और माननीय सीएम जितना चाहें झूठ का ढेर लगा सकते हैं, लेकिन जब सच सामने आता है तो वे उसे दबा नहीं सकते। सीएम स्टालिन के नेतृत्व वाली DMK सरकार को तमिलनाडु के लोगों को बहुत कुछ जवाब देना है। भाषा के मुद्दे को ध्यान भटकाने की रणनीति के रूप में उछालना और अपनी सुविधा के अनुसार तथ्यों को नकारना उनके शासन को नहीं बचा पाएगा।” शिक्षा मंत्री ने आगे कहा, ”NEP पर रुख में अचानक यह बदलाव क्यों? निश्चित रूप से राजनीतिक स्वार्थों और डीएमके के राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवित करने के लिए। डीएमके की यह प्रतिगामी राजनीति तमिलनाडु और उसके छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। मैं माननीय मुख्यमंत्री से विनम्र निवेदन करता हूं कि वे NEP 2020 को राजनीतिक नज़रिए से न देखें। कृपया राजनीतिक लाभ से ज्यादा तमिलनाडु के बच्चों के हितों को प्राथमिकता दें।”

‘राजनीतिक लाभ से जुड़ा है NEP 2020 का विरोध’
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने लिखा है, ”भाषा थोपने पर डीएमके का ताजा शोर और NEP के त्रिभाषा फॉर्मूले पर रुख उसकी हिपोक्रेसी को उजागर करता है। NEP 2020 का विरोध तमिल गौरव, भाषा और संस्कृति के संरक्षण से नहीं बल्कि राजनीतिक लाभ प्राप्त करने से जुड़ा है। डीएमके तमिल भाषा को बढ़ावा देने की वकालत करती है लेकिन, सच्चाई यह है कि उन्होंने तमिल भाषा, साहित्य और साहित्यिक प्रतीकों को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए बहुत कम काम किया है।

यूडीआईएसई+ डेटा के अनुसार, तमिल मीडियम में नामांकन 2018-19 में 65.87 लाख से घटकर 2023-24 में 46.83 लाख हो गया, यानी पांच साल की अवधि में 19.05 लाख से अधिक छात्रों की कमी।

67% छात्र अब अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में हैं, जबकि तमिल मीडियम में नामांकन 54% (2018-19) से घटकर 36% (2023-24) हो गया है।
सरकारी स्कूलों में, अंग्रेजी मीडियम में नामांकन केवल पांच वर्षों में 3.4 लाख से 17.7 लाख तक पाँच गुना बढ़ गया।
सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में तमिल नामांकन में 7.3 लाख की गिरावट आई, जो वरीयता में गहरे बदलाव को दर्शाता है।

‘NEP और भाषा थोपने पर DMK की खोखली बयानबाजी’
उन्होंने आगे लिखा है, ”ये संख्याएं वास्तविक कहानी को उजागर करती हैं- तमिल मीडियम में नामांकन लगातार घट रहा है। यह केवल भाषा वरीयता में बदलाव नहीं है, यह औपनिवेशिक मानसिकता का खेल है। अंग्रेजी को स्टेटस सिंबल और नौकरियों के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता है, जबकि भारतीय भाषाओं को पिछड़ेपन के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।” शिक्षा मंत्री ने कहा, ”मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित करना NEP 2020 के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। NEP और भाषा थोपने पर DMK की खोखली बयानबाजी उनकी विफलता को नहीं छिपा सकती। उनका एजेंडा तमिलनाडु के भविष्य की कीमत पर स्पष्ट राजनीति और सत्ता है।”

एनईपी ‘विनाशकारी नागपुर योजना’- स्टालिन
इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ‘‘विनाशकारी नागपुर योजना’’ करार दिया था और दोहराया था कि राज्य इसे स्वीकार नहीं करेगा भले ही केंद्र सरकार 10,000 करोड़ रुपये प्रदान करे। स्टालिन ने चेन्नई के नजदीक चेंगलपेट में एक सरकारी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘कल आपने टेलीविजन पर संसदीय कार्यवाही देखी होगी। वह अहंकार से कह रहे हैं कि तमिलनाडु को 2,000 करोड़ रुपये तभी दिए जाएंगे, जब हिंदी और संस्कृत को स्वीकार किया जाएगा। कौन? वह केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान थे।’’ उन्होंने कहा कि राज्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर रहा है क्योंकि यह तमिलनाडु में शिक्षा के विकास को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।

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