डोनाल्ड ट्रंप का दोहरा चरित्र: शांति के मंच पर नेता, युद्ध के मैदान में योद्धा?

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      रमन शुक्ला

नोएडा: जब दुनिया नेतृत्व संकट के दौर से गुजर रही है, तब कुछ नेता खुद को “शांति के रक्षक” के रूप में स्थापित करना चाहते हैं- और वहीं दूसरी ओर वही नेता युद्ध में सबसे पहले गोले दागने वालों की कतार में खड़े भी दिखाई देते हैं। डोनाल्ड ट्रंप का हालिया व्यवहार इसी विरोधाभास का जीवंत उदाहरण है।

मामला 1: भारत-पाक टकराव और ट्रंप की ‘शांति भूमिका’

10 मई 2025 को जब भारत और पाकिस्तान के बीच LOC पर हालात युद्ध जैसे बने, तब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर मध्यस्थता कर इस टकराव को रोका। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने तो उन्हें 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित तक कर दिया। लेकिन क्या वाकई ट्रंप का उद्देश्य शांति था? या फिर यह सिर्फ एक भू-राजनीतिक इमेज बिल्डिंग थी?

मामला 2: इज़राइल-ईरान युद्ध और अमेरिकी हस्तक्षेप

21 जून 2025 की रात, अमेरिका ने तीन ईरानी न्यूक्लियर साइट्स पर बंकर-बस्टर बमों से सीधा हमला किया — यह वो अमेरिका था जो महज कुछ दिन पहले “विश्व शांति के लिए चिंतित” दिखाई दे रहा था। इज़राइल-हमास युद्ध के बीच अमेरिका की यह कार्रवाई न सिर्फ युद्ध को और उग्र बना रही है, बल्कि *अंतरराष्ट्रीय शांति और कानून* के सिद्धांतों को भी चुनौती दे रही है।

ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से इन हमलों का समर्थन करते हुए कहा:

“ईरान की परमाणु क्षमता को हमने नेस्तनाबूद कर दिया है।”

क्या यही है “शांति पुरुष” की परिभाषा?

ट्रंप का दोहरा चरित्र:

भारत-पाक मुद्दे पर मध्यस्थ,
ईरान के मामले में हमलावर।

डोनाल्ड ट्रंप की कूटनीति आज व्यक्तिगत छवि निर्माण और अमेरिकी हित साधने* तक सीमित दिख रही है। जहां एक ओर वो नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन से खुश होते हैं, वहीं दूसरी ओर पश्चिम एशिया में खुलेआम मिसाइलें दागने से पीछे नहीं हटते। यह स्पष्ट करता है कि उनका नेतृत्व अब नीति आधारित नहीं, बल्कि सुविधा आधारित हो गया है।

भारत का दृष्टिकोण: स्थिरता और सिद्धांत

भारत हमेशा से युद्ध को अंतिम विकल्प मानता है। “वसुधैव कुटुंबकम्” और “शांति प्रथम” जैसे सिद्धांतों को आधार बनाकर भारत ने खुद को एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया है। दुनिया को आज ऐसे ही सिद्धांतवादी नेतृत्व की ज़रूरत है — जो सिर्फ बयान न दे, बल्कि मानवता और न्याय पर खड़ा हो।

फिलहाल डोनाल्ड ट्रंप आज एक ऐसे नेता के रूप में उभर रहे हैं, जिनके शब्द और कर्म अलग-अलग दिशा में चलते हैं। शांति के मंच पर भाषण देना आसान है, लेकिन युद्ध के मैदान में नैतिकता बनाए रखना ही असली नेतृत्व है।

(लेखक स्वतंत्रत पत्रकार और नीति विश्लेषक के साथ-साथ VSERV Academy और Vnation News के संस्थापक भी हैं)

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