नई दिल्ली । पूर्व थल सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे (Manoj Naravane) ने सोमवार को कहा कि रक्षा पर व्यय (Expenditure on Defence) कोई फिजूलखर्ची नहीं, बल्कि बीमा प्रीमियम है। इसका भुगतान यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि देश पर युद्ध (war) थोपा न जाए। जनरल नरवणे ने पुणे में अपनी पुस्तक ‘कैंटोनमेंट कॉन्सपिरेसीज’ के विमोचन के अवसर पर कहा कि आपस में जुड़ी दुनिया में भारत अलग-थलग या वैश्विक घटनाक्रम से कटा हुआ नहीं रह सकता। उन्होंने कहा, ‘5वीं शताब्दी में एक रोमन विद्वान ने कहा था कि अगर आप शांति चाहते हैं तो युद्ध के लिए तैयार रहें। आप शांति क्यों चाहते हैं? क्योंकि शांति विकास के लिए आवश्यक है।’
मनोज नरवणे ने कहा, ‘अगर शांतिपूर्ण वातावरण है तभी आप फल-फूल सकेंगे। तभी आपके कारखाने चलेंगे, आपके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और आप निवेश आकर्षित करेंगे। चाहे वह घरेलू हो या विदेशी लेकिन अगर शांति आवश्यक है, तो आपको युद्ध के लिए तैयार रहना होगा और रक्षा की तैयारी सस्ती नहीं होती। इसकी एक कीमत होती है।’ उन्होंने रक्षा व्यय से संबंधित आलोचनाओं को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा को आउटसोर्स नहीं किया जा सकता, क्योंकि खुद को सुरक्षित रखना देश की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

‘देश के लिए जितना बड़ा खतरा होगा…’
पूर्व सेना प्रमुख ने कहा, ‘रक्षा पर खर्च फिजूलखर्ची नहीं है। यह एक बीमा प्रीमियम है। जैसे हम सभी के पास बीम है और हम किसी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिए प्रीमियम का भुगतान करते हैं। व्यापक कवरेज के लिए अधिक प्रीमियम देना होगा। इसी तरह देश के लिए जितना बड़ा खतरा होगा, रक्षा पर उतना ही अधिक खर्च करना होगा।’ उन्होंने रूस और यूक्रेन का उदाहरण देते हुए कहा कि यूक्रेन ने अपनी रक्षा तैयारियों की उपेक्षा की।
रूस और यूक्रेन का दिया उदाहरण
नरवणे ने कहा, ‘चूंकि उन्हें कमजोर समझा जा रहा था इसलिए रूस ने इसका फायदा उठाने की सोची। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में 2022 के आक्रमण के एक साल के भीतर पुनर्निर्माण लागत 400 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई। अगर उन्होंने इसका एक अंश भी रक्षा पर पहले खर्च किया होता तो शायद उन्हें इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।’