नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि तलाक देने से पहले यह पता लगाया जाना जरूरी है कि कपल के अलग होने के पीछे क्या वजह है। शीर्ष न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि अदालतों को यह नहीं मान लेना चाहिए कि शादी पूरी तरह से टूट चुकी है। दरअसल, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मामले में पुरुष को तलाक की मंजूरी दे दी थी। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुनवाई के दौरान एपेक्स कोर्ट ने पाया कि उच्च न्यायालय शादी खत्म करने से पहले कई मुद्दों को सुलझाने में नाकाम रहा था।
14 नवंबर को जस्टिस सूर्यकांत (अब भारत के मुख्य न्यायाधीश) और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच की तरफ से आदेश जारी किया गया था। बेंच ने कहा था कि यह मान लेना की शादी को अब ठीक नहीं किया जा सकता, कोर्ट को पहले जांच करनी चाहिए कि किसी एक पक्ष ने जानबूझकर दूसरे को छोड़ा है। साथ ही कहा कि यह भी जांच करनी चाहिए कि पक्ष ऐसे किसी हालात की वजह से अलग रह रहे हैं, जो उनके नियंत्रण में नहीं हैं।
कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए हैं कि जब तक इच्छा से अलग होने या साथ रहने से इनकार करने का सबूत नहीं मिल जाता, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि शादी पूरी तरह से टूट चुकी है। कोर्ट ने कहा कि अगर पक्षों का बच्चा है, तो यह सवाल और भी ज्यादा अहम हो जाता है। बार एंड बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से लिखा, ‘जानबूझकर छोड़ने या साथ रहने से इनकार करना या साथी का ध्यान रखने से इनकार करने का सबूत नहीं हो, तो यह नहीं कहा जा सकता कि शादी पूरी टूट चुकी है। इसका खासतौर से बच्चों पर बुरा असर हो सकता है। ऐसे नतीजों पर पहुंचने पर कोर्ट पर यह बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है कि सभी सबूतों का ध्यान से एनालिसिस करे, सामाजिक हालातों, पक्षों का बैकग्राउंड और अन्य बातों का ध्यान रखे।’

साल 2010 में पुरुष ने क्रूरता का दावा कर तलाक की अर्जी दी थी। हालांकि, इसे बाद में वापस ले लिया गया था। साल 2013 में दूसरी याचिका दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया है। साल 2018 में ट्रायल कोर्ट ने छोड़े जाने का कोई सबूत नहीं मिलने पर याचिका खारिज कर दी। 2019 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा और तलाक की मंजूरी दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने पति की मौखिक बातों पर गौर किया, लेकिन पत्नी के दावों को नजरअंदाज किया कि उन्हें ससुराल से जबरन बाहर कर दिया था। साथ ही इसके बाद उन्होंने अकेले ही बच्चे को पाला। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने कई कानूनी सवालों को भी नजरअंदाज किया, जो सीधे तौर पर मामले से जुड़े थे। शीर्ष न्यायालय ने मामले को विचार के लिए दोबारा उच्च न्यायालय भेजा है।