जापान के प्रधानमंत्री शिबेरु इशिबा ने छोड़ा अपना पद, पार्टी को टूटने से बचाने के लिए दिया इस्तीफा

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नई दिल्ली: जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने रविवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के भीतर उठ रहे असंतोष और पार्टी टूटने की आशंका को देखते हुए उन्होंने यह कदम उठाया। जापानी मीडिया NHK के मुताबिक, इशिबा की विदाई LDP के लिए बड़े राजनीतिक संकट के बीच हुई है।

चुनावी हार से कमजोर हुई पकड़

जुलाई में हुए हाउस ऑफ काउंसलर्स (ऊपरी सदन) के चुनाव में इशिबा की LDP और सहयोगी दलों को करारी हार झेलनी पड़ी थी। गठबंधन बहुमत हासिल करने में असफल रहा। कुल 248 सीटों वाले सदन में बहुमत के लिए 125 सीटों की जरूरत थी, लेकिन गठबंधन को महज़ 47 सीटें मिलीं, जिनमें से 39 LDP के खाते में आईं।इससे पहले अक्टूबर 2024 के निचले सदन चुनाव में भी LDP-कोमेतो गठबंधन बहुमत से दूर रह गया था। पहली बार ऐसा हुआ कि 1955 में बनी LDP दोनों सदनों में अल्पमत में चली गई।

पार्टी में उठा ‘इशिबा हटाओ’ आंदोलन
लगातार चुनावी असफलताओं के बाद पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा। कई नेताओं ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए उन्हें हटाने की मांग की। इशिबा ने हाल ही में जनता से माफी मांगी थी और इस्तीफे का संकेत दिया था। रविवार को उन्होंने औपचारिक रूप से पद छोड़ दिया।

संसद में बहुमत नहीं, विपक्ष का सहारा
हालांकि इशिबा प्रधानमंत्री बने रहे क्योंकि LDP सबसे बड़ी पार्टी थी और विपक्ष बंटा हुआ था। मुख्य विपक्षी दल CDPJ को 148 सीटें मिलीं, लेकिन वह गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं था। विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बनाई, मगर इशिबा ने चेतावनी दी थी कि ऐसा हुआ तो संसद भंग कर दोबारा चुनाव कराएंगे।सरकार चलाने के लिए इशिबा को छोटे दलों और विपक्षी नेताओं का समर्थन लेना पड़ा। यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक मजबूरी मानी जा रही थी।

जनता की नाराजगी और अमेरिकी टैरिफ
चुनाव उस दौर में हुए जब जापान में महंगाई और अमेरिकी टैरिफ से जनता परेशान थी। इस मुद्दे ने सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ माहौल बनाया। इशिबा ने हाल ही में अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता किया था, जिसमें जापानी ऑटोमोबाइल पर टैरिफ 25% से घटाकर 15% कर दिए गए।इससे टोयोटा और होंडा जैसी कंपनियों को राहत मिली, लेकिन राजनीतिक तौर पर यह डील इशिबा की डूबती नाव को नहीं बचा सकी।

इशिबा के इस्तीफे के बाद LDP में नई नेतृत्व की दौड़ शुरू हो गई है। पार्टी को न सिर्फ संसद में अपनी स्थिति मजबूत करनी है, बल्कि जनता का भरोसा भी वापस जीतना है।जापान की राजनीति अब तय करेगी कि क्या LDP अपनी परंपरागत पकड़ कायम रख पाएगी या विपक्ष इस मौके को भुना पाएगा।

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