निमिषा प्रिया केस: यमन में फांसी टली, राजनयिक और धार्मिक प्रयासों से मिली राहत

भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में मिलने वाली फांसी को फिलहाल टाल दिया गया है। जानें कैसे भारत सरकार, धार्मिक नेताओं और मानवीय प्रयासों ने उसकी जान बचाई।

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भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जानी थी। लेकिन अब इस सज़ा को फिलहाल के लिए टाल दिया गया है। यह फैसला भारत सरकार, केरल के धार्मिक नेताओं और अंतरराष्ट्रीय मानवीय प्रयासों के चलते आया है। इस खबर से निमिषा के परिवार और समर्थकों ने राहत की सांस ली है।

कौन हैं निमिषा प्रिया?

निमिषा प्रिया, केरल की रहने वाली एक नर्स हैं, जो 2008 में रोज़गार के लिए यमन गई थीं। 2017 में उन पर यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप लगा।

निमिषा ने दावा किया कि वह अपने पासपोर्ट को वापस पाने के लिए पीड़ित को बेहोश करना चाहती थीं, लेकिन गलती से उसकी मौत हो गई। यमन की अदालत ने इसे जानबूझकर की गई हत्या माना और 2018 में मौत की सज़ा सुना दी, जिसे 2020 में यमन के सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा।

फांसी क्यों हुई थी तय?

यमन के शरिया कानून के अनुसार, हत्या के मामलों में पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए मौत की सजा दी जा सकती है। निमिषा के मामले में भी यही कानून लागू हुआ।

हालांकि भारत में कई सामाजिक संगठन और मानवीय अधिकार समूह इस मामले को दुर्घटनावश हुई मौत मानते हैं।

कैसे टली फांसी?

1. भारत सरकार का हस्तक्षेप

विदेश मंत्रालय ने यमन सरकार के साथ लगातार बातचीत की और कानूनी प्रक्रिया को धीमा करने की कोशिश की।

2. धार्मिक नेतृत्व की भूमिका

केरल के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु कान्तापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार ने यमन के धार्मिक और जनजातीय नेताओं से संपर्क किया। उनके प्रयासों से पीड़ित परिवार से बातचीत की राह बनी।

3. ब्लड मनी (दिय्यत)

शरिया कानून के अंतर्गत अगर पीड़ित परिवार मुआवज़ा (blood money) स्वीकार कर ले, तो सज़ा को माफ किया जा सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय पक्ष ने करीब 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹8 करोड़) की पेशकश की है।

भारत में प्रतिक्रिया

केरल समेत पूरे भारत में इस खबर को लेकर भावनात्मक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। #SaveNimishaPriya जैसे अभियान सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे हैं।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इन प्रयासों की सराहना की और कहा कि यह एकता और इंसानियत की जीत है।

आगे क्या?

  • यदि पीड़ित का परिवार ब्लड मनी स्वीकार करता है, तो निमिषा की फांसी स्थायी रूप से टल सकती है

  • यदि मुआवज़ा अस्वीकार किया गया, तो सजा किसी भी समय फिर से लागू हो सकती है

  • अभी भी भारत सरकार और संबंधित संस्थाएं मामले को सुरक्षित निष्कर्ष तक पहुंचाने में जुटी हैं।

निष्कर्ष

निमिषा प्रिया का मामला सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि मानवीय, धार्मिक और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का भी उदाहरण है।
इस अस्थायी राहत से उम्मीद जगी है कि उचित न्याय और इंसानियत की जीत हो सकती है।

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