अयोध्या: अगहन पंचमी के अवसर पर आयोजित होने वाले श्रीराम विवाहोत्सव के उपलक्ष्य में आयोध्या में आयोजित होने वाले रामायण मेला का शुभारम्भ गुरुवार को होगा। मेला का यह 42वां वर्ष है। इस बार मुख्यमंत्री योगी समापन समारोह में शामिल हो सकते हैं। फिलहाल रामायण का मेला औपचारिक अनावरण महापौर गिरीश पति त्रिपाठी पूर्वाह्न तीन बजे करेंगे। उधर रंगमहल, जानकी महल, विअहुति भवन व रामहर्षण कुंज सहित अन्य मंदिरों में उत्सव का श्रीगणेश भी गुरुवार से ही होगा।
समाजवादी चिंतक डा. राम मनोहर लोहिया ने की थी और चित्रकूट से इसका शुभारम्भ 1968 में किया था। वहीं अयोध्या में रामायण मेला 1981 में शुरू हुई थी। इस रामायण मेला की परम्परा में उद्घाटन या समापन में क्रमशः मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होते रहे। वहीं 1996 में सूबे की कमान बसपा सुप्रीमो मायावती के संभालने के बाद परम्परा टूट गई। भाजपा के मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह व राजनाथ सिंह ने पुनः परिमार्जन किया लेकिन फिर 2002 के बाद 2017 में ही मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ इस आयोजन में शामिल हुए।

उधर दशरथ राजमहल बड़ा स्थान में राम विवाहोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित रामकथा के द्वितीय दिवस में व्यास पीठ का पूजन बिंदुगद्याचार्य स्वामी देवेन्द्र प्रसादाचार्य के साथ नगर आयुक्त व एडीए के वीसी विशाल सिंह ने किया। इस मौके पर विद्वान आचार्य जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने भवानी पार्वती और भगवान् शंकर को क्रमशः श्रद्धा और विश्वास के रूप में निरुपित किया है।
मानस में रामकथा भगवान् शंकर के मुख से कही गई है और भवानी पार्वती ने सुनी है। इसका तात्पर्य यह है कि जब कथा विश्वासपूर्वक कही जाए और श्रद्धापूर्वक सुनी जाए तब पूर्ण फलवती होती है। उन्होंने कहा कि मानस में भवानी पार्वती के जन्म का वर्णन है परंतु शंकर का नहीं। श्रद्धा का जन्म होता है, किन्तु विश्वास का नहीं। श्रद्धा का जन्म बुद्धि में होता है पर विश्वास हृदय का सहज स्वभाव है।