नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) 2025 की चौथी तिमाही में रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर सकता है। यदि जून से जारी हाई-फ्रीक्वेंसी डेटा में नरमी बनी रहती है तो यह तब संभव हो सकता है। एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च की एक ताजा रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है।
महंगाई और आर्थिक विकास पर नजर
रिपोर्ट के अनुसार, अगर हाई-फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स कमजोर रहते हैं, तो आरबीआई विकास दर का अनुमान घटा सकता है। ऐसे में रेपो रेट को मौजूदा 5.5% से घटाकर 5.25% किया जा सकता है। बता दें कि अगस्त की मौद्रिक नीति में आरबीआई ने रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर रखा था, जबकि जून में 0.50% की कटौती की गई थी।
जुलाई में महंगाई आठ साल के निचले स्तर पर
जुलाई 2025 में खुदरा महंगाई दर सालाना आधार पर 1.55% रही, जो आठ साल का सबसे निचला स्तर है। खाद्य पदार्थों की कीमतों में मामूली वृद्धि हुई, लेकिन ऊर्जा और मुख्य महंगाई दर में नरमी बनी रही। सब्जियों की कीमतें, जो पहले छह महीने तक अवस्फीति में थीं, उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ीं, जिससे आंकड़े अप्रत्याशित रहे।

वित्त वर्ष 2026 में महंगाई का अनुमान 3.2%
एचएसबीसी की रिपोर्ट में अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में औसत महंगाई दर 3.2% रहेगी। इसके पीछे कम आधार, अनाज का अच्छा भंडार, खरीफ फसलों की बेहतर बुआई और कमजोर कमोडिटी कीमतें हैं। मुख्य महंगाई दर घटकर 3.6% पर आ गई, जो पहले 3.8% थी। खाद्य कीमतों में छह महीने बाद 0.2% की वृद्धि दर्ज की गई। 9.7 प्रतिशत भार वाले भारी अनाजों में लगातार दूसरे महीने गिरावट जारी रही।
खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव
रिपोर्ट में बताया गया कि दाल, चीनी और फलों की गिरती कीमतों ने खाद्य तेल, अंडे, मांस, मछली और सब्जियों की बढ़ती कीमतों की आंशिक भरपाई की। भारी अनाजों की कीमतों में लगातार दूसरे महीने गिरावट देखी गई। कुल मिलाकर, वार्षिक महंगाई लाल निशान में रही, जिससे मुख्य आंकड़े आठ साल के निचले स्तर पर पहुंच गए।
ऐसे में एचएसबीसी का मानना है कि अगर आर्थिक आंकड़े कमजोर रहते हैं, तो आरबीआई मौद्रिक नीति में नरमी ला सकता है। रेपो रेट में कटौती से अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिल सकती है, लेकिन महंगाई पर कड़ी नजर रखना जरूरी होगा।