नई दिल्ली : सरकार ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में निजी भागीदारी को अनुमति देने वाले नाभिकीय ऊर्जा का सतत दोहन तथा उन्नयन विधेयक, 2025 (शांति विधेयक, 2025) को सोमवार को लोकसभा (Lok Sabha) में पेश कर दिया है। सरकार ने कहा है कि यह विधेयक देश के नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में 1962 के बाद सबसे बड़ा सुधार लाने वाला है। सोमवार को परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे लोकसभा की पूरक कार्यसूची में शामिल कर सदन के पटल पर पेश किया।
सरकार के मुताबिक विधेयक का मुख्य उद्देश्य नाभिकीय ऊर्जा के सुरक्षित और सतत उपयोग को बढ़ाना है, ताकि विद्युत उत्पादन के अलावा स्वास्थ्य (कैंसर उपचार), कृषि (फसल संरक्षण एवं विकिरण), जल शुद्धिकरण, उद्योग, पर्यावरण संरक्षण तथा वैज्ञानिक नवाचार जैसे क्षेत्रों में इसका व्यापक लाभ मिल सके। सरकार ने यह भी कहा है कि विधेयक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह निजी क्षेत्र (घरेलू और विदेशी कंपनियों) को नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश की अनुमति देता है। बिल में किए जा रहे प्रावधानों से 2047 तक भारत में 100 गीगावाट परमाणु क्षमता का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने की भी उम्मीद जताई जा रही है, विशेष रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) के माध्यम से।

यह बिल परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 और नागरिक नाभिकीय क्षति दायित्व अधिनियम 2010 को निरस्त कर एक नया, एकीकृत कानून बनाने जा रहा है। बिल में स्वतंत्र परमाणु सुरक्षा नियामक की स्थापना, दायित्व के नियमों में संशोधन, विवाद निपटारे के लिए विशेष ट्रिब्यूनल और किसी भी तरह की क्षति पर दावे पेश करने का प्रावधान भी किया गया है।
सरकार ने कहा है कि यह विधेयक ‘विकसित भारत 2047’ के विजन का हिस्सा है और यह परमाणु प्रौद्योगिकी को स्वच्छ, स्थिर और आधारभूत ऊर्जा स्रोत के रूप में स्थापित कर जलवायु-अनुकूल विकास को बढ़ावा देने वाला है। विधेयक ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है और सरकार ने इसे नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य (2070) में योगदान देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया है।