नई दिल्ली: एक जुलाई, 2025 को जीएसटी सिस्टम को लागू हुए आठ साल पूरे हो गए। इन आठ सालों के दौरान टैक्स कलेक्शन में काफी बढ़ोतरी हुई, लेकिन व्यापारी और आम जनता को जीएसटी में अभी और सरलीकरण का इंतजार है। बीते आठ सालों में जीएसटी सिस्टम को आसान बनाने की कई कोशिश हुई और इससे कारोबारियों को राहत भी मिली है। हालांकि, जीएसटी स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया, जबकि सरकार ने जीएसटी के शुरुआती दौर में ही यह वादा किया था।
ऐसी सैकड़ों वस्तुएं हैं जिनकी जीएसटी रेट में असमानता से कंज्यूमर को परेशानी होती है। कारोबारियों के मुताबिक, अगर उनका एक ऑफिस दिल्ली में है और दूसरा नोएडा में तो उनका जीएसटी ऑडिट या मूल्यांकन अलग-अलग अधिकारी करेंगे और वह ऑडिट भी अलग-अलग होगा। इसकी वजह से उन्हें कई तरह की परेशानी होती है।
जीएसटी की धारा 129 का गलत इस्तेमाल
भारतीय कृषि उत्पाद उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानेश मिश्र कहते हैं कि जीएसटी की धारा 129 का गलत इस्तेमाल हो रहा है और इस संबंध में उन्होंने सरकार को पत्र भी लिखा है। उत्तर प्रदेश के कानपुर से दिल्ली एयरपोर्ट होते हुए स्वीडन जाने वाले जूते से लदे गाड़ी को वैध चालान और ई-वे बिल होने के बावजूद आगरा में रोक लिया गया और बिना तत्काल सुनवाई के 12 दिनों तक रोक कर रखा गया। मिश्र ने आगे कहा कि जीएसटी पोर्टल में जो पता है और वह बदल गया है तो उस पते पर माल भेजने पर भी धारा 129 के तहत जीएसटी अधिकारी माल को पकड़ लेते हैं।

ऑडिट नियमों में सुधार की आवश्यकता
डेलाइट के पार्टनर (अप्रत्यक्ष कर) हरप्रीत सिंह ने बताया कि सरकार को जीएसटी रिटर्न का और सरलीकरण के साथ जीएसटी को आराम से अपनाने के लिए छोटे-छोटे कारोबारियों को तकनीकी मदद देनी चाहिए। वहीं, देश के तीन-चार हिस्सों में कारोबार करने वाले कारोबरी का ऑडिट या मूल्यांकन भी एक ही अधिकारी से कराई जानी चाहिए। चार्टर्ड एकाउंटेंट व जीएसटी विशेषज्ञ प्रवीण शर्मा ने बताया कि इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने में भी कारोबारियों को दिक्कतें आ रही हैं। दो व्यापारियों ने आपस में कारोबार किया और किसी एक ने अपना जीएसटी रिटर्न नहीं भरा है तो दूसरे को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा। कई एसे छोटे कारोबारी हैं जिन्होंने सालों से पोर्टल पर लॉग-इन नहीं किया है, लेकिन सरकारी की तरह से उन्हें टैक्स की डिमांड आई हुई है। कारोबारियों को दूसरे माध्य से भी डिमांड की सूचना दी जानी चाहिए।
टैक्स में समानता का अब भी इंतजार
रोटी और पराठे पर जीएसटी का रेट अलग है। बन और बटर पर कोई जीएसटी नहीं है, लेकिन बन और बटर लगाकर परोसा गया तो जीएसटी लग जाएगा। वहीं, 25 किलोग्राम तक के पैक्ड अनाज जैसे कि दाल, चावल और अन्य पर पांच फीसदी का टैक्स वसूला जात है। लेकिन, अगर 26 किलोग्राम या 30 किलोग्राम के पैक्ड अनाज खरीदते हैं तो उस पर कोई भी टैक्स नहीं लिया जात है। अब 25 किलोग्राम से कम खरीदने वालों का इसमें क्या कसूर है।