नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन भी शामिल हैं, इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई केस लिस्ट के अनुसार यह मामला आइटम नंबर 13 के रूप में सूचीबद्ध है। इस अधिनियम को लेकर कई संगठनों और नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें कहा गया है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट याचिका दाखिल की है ताकि बिना पक्ष सुने इस पर कोई प्रतिकूल आदेश पारित न किया जाए। यह कैविएट इस बात का संकेत है कि सरकार इस मुद्दे पर अपना पक्ष मजबूती से रखना चाहती है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी थी, जिसे पहले संसद के दोनों सदनों में भारी बहस के बाद पारित किया गया था। इसके खिलाफ जिन नेताओं और संगठनों ने याचिका दाखिल की है, उनमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद, समाजवादी पार्टी सांसद जिया उर रहमान बर्क, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी, केरल के सुन्नी संगठन समस्था केरला जमीयतुल उलेमा, SDPI, IUML और Association for Protection of Civil Rights (APCR) शामिल हैं।
AIMPLB ने भी SC में दी है चुनौती
AIMPLB (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) ने भी अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। बोर्ड का कहना है कि यह संशोधन मनमाना, भेदभावपूर्ण और बहिष्करण आधारित है। वहीं राजद सांसद मनोज झा और फैज़ अहमद तथा बिहार के विधायक मोहम्मद इजहार असफी ने भी इसे चुनौती दी है, यह कहते हुए कि इससे मुस्लिम धार्मिक संस्थानों में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा।

DMK नेता ए राजा, जो कि वक्फ संशोधन विधेयक पर बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य थे, ने भी इस कानून को चुनौती दी है। जावेद की याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है, क्योंकि अन्य धार्मिक संस्थाओं पर ऐसी पाबंदियां नहीं लगाई गई हैं। ओवैसी ने कहा कि यह अधिनियम वक्फ की स्वायत्तता को कमजोर करता है और वर्षों की मेहनत को पीछे धकेलता है। अमानतुल्लाह खान ने कहा कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है।
समस्था केरला जमीयतुल उलेमा ने तर्क दिया कि ये संशोधन वक्फ की धार्मिक प्रकृति को बिगाड़ देंगे और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करेंगे। वहीं मौलाना मदनी ने अपनी याचिका में कहा कि पोर्टल और डाटाबेस पर वक्फ विवरण को अपलोड करने की समयसीमा जैसे प्रावधान ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों को खतरे में डाल सकते हैं। NGO द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया कि यह अधिनियम न केवल अनावश्यक है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में खतरनाक हस्तक्षेप है, जिससे वक्फ की मूल भावना कमजोर होती है।