बर्बरता के 9 साल, जिसने देश को दिया कलंक जानिए क्या बदला इन बीते सालो में

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निर्भया कांड आजाद हिंदुस्तान की उन वीभत्स और जघन्य घटनाओं में से एक है जिसने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं. इस कांड के बाद देश में जिस तरह की प्रतिक्रिया हुई वो भी विरले ही दिखती है. यह एक ऐसी घटना बनी जिसकी याद भारतीय जनमानस के पटल पर आने वाले कई दशकों तक ज़िंदा रहेगी.

आज से ठीक 9 साल पहले यानी 16 दिसंबर 2012 की वो खौफनाक और मनहूस रात जिसने एक झटके में एक लड़की की जिंदगी को खत्म कर दिया, लेकिन इस घटना ने आम लोगों को अंदर तक झकझोर दिया. यही नहीं इस घटना से सबक लेते हुए भारतीय कानून व्यवस्था में महिलाओं के पक्ष में कई अहम बदलाव भी किए गए. इस कांड को निर्भया कांड कहा गया.

साल 2012, की सर्द और अंधेरी रातों में से एक 16 दिसंबर की रात 23 साल की निर्भया अपने एक दोस्त के साथ दिल्ली के साकेत सिलेक्ट सिटी वॉक सिनेमा हॉल में फिल्म देखने गई थीं. कॉल सेंटर में काम करते हुए फिजियोथेरेपी की अपनी पढ़ाई के लिए खर्च निकालते हुए वह बड़ी उड़ान के सपने भी देख रही थी.

फिल्म देखने के बाद निर्भया अपने दोस्त के साथ घर जाने के लिए ऑटो का इंतजार कर रही थी, लेकिन काफी देर तक द्वारका जाने का कोई साधन नहीं मिला तो वे ऑटो में बैठकर मुनीरका बस स्टैंड तक आ गए. लेकिन यहां से भी उन्हें द्वारका जाने का कोई साधन नहीं मिल रहा था.
रात बढ़ती जा रही थी. इस बीच एक बस पास से गुजर रही थी और इसे देखते हुए निर्भया तथा उसके दोस्त ने बस से ही आगे का सफर पूरा करने की योजना बनाई क्योंकि वह बस भी द्वारका ही जा रही थी, जहां उन्हें भी जाना था. इसी बस में 6 और लोग भी बैठे हुए थे.

बस द्वारका के लिए निकल गई थी और अभी रात के 10 नहीं बजे थे और सड़को पर भी लोग नहीं दिख रहे थे. इस बीच बस में सवार एक नाबालिग लड़के और उसके साथियों ने इन दोनों लोगों के साथ बदतमीजी शुरू कर दी. शुरुआती बदतमीजी ने अचानक बड़ा और खतरनाक रूप अख्तियार कर लिया और यह आजाद भारत के लिए कलंक साबित हो गया.

स्लम एरिया में रहने वाले अपराधी प्रवृत्ति के राम सिंह और उसके अन्य साथियों ने निर्भया के दोस्त के साथ बुरी तरह से मारपीट की तो वहीं दूसरी ओर निर्भया को बस के पीछे ले जाकर उसके साथ हाथापायी भी की. यही नहीं इन अपराधियों ने बारी-बारी से उसके साथ रेप भी किया. निर्भया के विरोध करने पर लोहे की रॉड पीड़िता के शरीर में डालकर जानलेवा हमले तक किए गए. दोनों लोग घायल अवस्था में बुरी तरह वहीं पड़े रहे.

घड़ी की सुइयों के रात के 10 के ऊपर चले जाने और बेटी निर्भया के घर नहीं आने पर माता-पिता को चिंता हुई तो बार-बार फोन करने लगे लेकिन फोन स्वीच ऑफ बता रहा था. इस बीच सवा 11 बजे उनके पास फोन आया और फिर माता-पिता बेटी को देखने सफदरजंग अस्पताल पहुंचे. जहां निर्भया की हालत बेहद खराब थी.

बर्बरता की हदें पार करने वालों ने भी नहीं सोचा होगा कि वो जो कर रहे हैं वो कितना वीभत्स होगा. इलाज के दौरान जब निर्भया की मेडिकल जांच की गई तो पता चला कि रेपिस्टों ने हमलों के दौरान लोहे के रॉड से पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स के साथ-साथ उनकी आंत भी बाहर निकला दी थी. कई दिनों वह दिल्ली के अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करती रही. फिर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने 27 दिसंबर को उसे हवाई एंबुलेंस के जरिए सिंगापुर भेजा, लेकिन 29 दिसंबर की सुबह निर्भया ने अपनी छोटी सी जिंदगी की आखिरी सांस लीं.

निर्भया के जाने के बाद देशभर में महिलाओं ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया और हर ओर दोषियों को उनके किए की सजा दिलाने की मांग होने लगी. लगातार विरोध-प्रदर्शन और बढ़ते दबाव के बीच मनमोहन सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वर्मा की अगुवाई में 3 सदस्यीय समिति का गठन किया. देशभर से आए सुझावों के आधार पर सिर्फ 29 दिनों में तैयार की गई 630 पन्नों की यह रिपोर्ट बाद में 2013 में पारित किए गए ‘क्रिमिनल अमेंडमेंट ऐक्ट’ का आधार भी बना. इस नए कानून के तहत रेप की सजा को 7 साल से बढ़ा कर उम्र कैद तक कर दिया गया.

दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस ने हादसे के एक हफ्ते के अंदर राम सिंह, मुकेश सिंह, अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और एक नबालिग समेत कुल 6 आरोपियों को पकड़ लिया. बाद में बस की भी पहचान कर ली गई.

मामला कोर्ट में पहुंचा. पुलिस ने आरोपियों की गिरफ्तारी के एक हफ्ते के अंदर ही अदालत में चार्जशीट फ़ाइल कर दी. मृत्यु से पहले निर्भया के दिए गए स्पष्ट बयान और फिर उनके दोस्त के कोर्ट के सामने दिए बयानों ने आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इस बीच पुलिस के मुताबिक, मार्च 2013 में मुख्य अभियुक्त राम सिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली. जबकि अगस्त 2013 में नाबालिग अभियुक्त को जुवेनाइल कोर्ट ने रेप और हत्या का दोषी घोषित करते हुए 3 साल के लिए बाल सुधार गृह भेज दिया.

निर्भया कांड के बचे शेष बचे चार दोषियों (मुकेश सिंह, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और अक्षय ठाकुर) को सितंबर 2013 में दिल्ली की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने गैंग रेप, हत्या और सबूत मिटाने के लिए दोषी ठहराया. चारों को मौत की सज़ा सुनाई गई. दूसरी ओर, दोषियों को फंदे पर लटकाने से रोकने के लिए याचिकाएं औऱ पैंतरे चले गए लेकिन पहले दिल्ली हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका खारिज कर दी गई.

निर्भया की मां आशा देवी का दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में अहम रोल रहा. उन्हें मौत की सजा दिलाने तक वह लगातार संघर्ष करती रहीं. बार-बार दया याचिका लगाए जाने से दोषियों को सजा टलती जा रही थी, लेकिन लंबे इंतजार के बाद वो दिन भी आया जब दोषियों को उनके किए की सजा पूरी दुनिया ने देखी. 20 मार्च 2020 को निर्भया कांड में दोषी करार दिए गए विनय कुमार शर्मा, मुकेश कुमार, पवन गुप्ता और अक्षय कुमार को फांसी पर लटका दिया गया.

हालांकि निर्भया के दोषियों को सजा मिल चुकी है, लेकिन रेप के जघन्य अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. लगातार आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने को मिल रही हैं.

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