क्या लोग भूल चुके है प्यार की असली परिभाषा ?

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फरवरी आई नही विलायती प्रेम हवा में फैल गया है . वैलेंटाइन डे ,उसके जु़डे लोग की बाजार में आहट सुनाई देने लगी हैं. हमारे पास हीर-राझां , सोहनी -महीवाल , सस्सी -पुन्नू की अमर प्रेम गाथा है . लेकिन उस तरह का प्रेम बस अब किताबो में मिलता है .

एक समय ऐसा था जब प्रेम का जीवन बडा मुल्य था , आज प्रेम करते सब है लेकिन अपने अपने तरीके से या उसे बीच रास्ते में आधा -अधूरा छोड देते है. उसकी वजह भी कुछ अजीब ही होती है .

प्रेम का जीवन में जो वास्तविक महत्व है उसे शब्दो में व्यक्त कर पाना मुश्किल है . यदि मानवता को जीवित रखना है तो प्रेम को जीवित रखना जरुरी है .

प्रेम के बारे में बहुत सारी धारणाएं बनी हुई है कि प्रेम अंधा होता है देखकर किया जाता है प्रेम पागलपन है प्रेम दीवानापन है प्रेम आकर्षण है प्रेम उजाला है उमंग है प्रेम उत्साह है दिल की सर्जनशीलता है दो दिलों का एक हो जाना है प्रेम मार्गदर्शक है प्रेम एहसास है प्रेम आवारा है प्रेम मनुष्य का स्वभाविक भाव है . हमारे आसपास कई सारे उधाहरण देखे जा सकते है जैसे आपने सुना होगा की मुझे प्रेम ने आबाद कर दिया है ,या कोई कहता है हमे प्रेम ने हमे बर्बाद कर दिया है . ऐसा शायद प्रेम पर नही प्रेम करने वाले व्‍यक्ति पर निर्भर करता है की उसे प्रेम किस तरह समझना है और किस तरह करना है .

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