जन्माष्टमी 2025 व्रत: तारीख, मुहूर्त, नियम और पारण का सही समय

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 के शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और पारण के नियम जानें

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Janmashtami Vrat Kab Hai 2025 (जन्माष्टमी व्रत कब है): सनातन धर्म में जन्माष्टमी का व्रत अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और सच्चे मन से करता है, उसके जीवन की सभी कठिनाइयाँ और बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इस वर्ष यह पावन व्रत 16 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा, जबकि व्रत का पारण 17 अगस्त की सुबह 5 बजकर 55 मिनट के बाद किया जा सकेगा। हालांकि, कई श्रद्धालु व्रत का पारण व्रत वाली रात में ही भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के बाद करते हैं। इस अवसर पर व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं, भगवान कृष्ण का स्मरण करते हैं और विशेष नियमों का पालन करते हुए पूजा करते हैं, ताकि उन्हें पूर्ण फल की प्राप्ति हो सके।

वर्ष 2025 में कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत 16 अगस्त, शनिवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण 17 अगस्त की सुबह 5:51 बजे के बाद किया जा सकेगा। निशिता काल पूजा का शुभ समय 17 अगस्त को रात 12:04 से 12:47 बजे तक रहेगा, जबकि चंद्र दर्शन का समय 16 अगस्त की रात 11:32 बजे होगा। अष्टमी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त को रात 11:49 बजे होगी और यह 16 अगस्त को रात 9:34 बजे समाप्त होगी। वहीं, रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त को सुबह 4:38 बजे प्रारंभ होगा और 18 अगस्त को रात 3:17 बजे तक रहेगा। इन शुभ मुहूर्तों में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से व्रत का फल अनेक गुना बढ़ जाता है।

जन्माष्टमी के दिन व्रतधारी प्रातःकाल स्नान करके भगवान श्रीकृष्ण की उपासना आरंभ करते हैं। श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस व्रत में फलाहार ग्रहण किया जा सकता है, जबकि दिनभर मन ही मन भगवान का ध्यान करना शुभ माना जाता है। रात में निशिता काल में भगवान कृष्ण का अभिषेक कर, आरती की जाती है और उन्हें भोग अर्पित किया जाता है। कुछ श्रद्धालु रात्रि 12 बजे भगवान के जन्मोत्सव के बाद व्रत खोलते हैं, जबकि कई लोग अगले दिन नवमी तिथि पर पारण करते हैं।

जन्माष्टमी व्रत का पारण प्रायः अगले दिन सूर्योदय के बाद निर्धारित समय पर किया जाता है। परंपरा के अनुसार, पारण अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों के समाप्त होने के बाद करना शुभ माना जाता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र एक ही दिन के सूर्यास्त तक समाप्त न हों, तो इनमें से किसी एक के समाप्त होने के बाद व्रत तोड़ना उचित होता है। यह नियम व्रत की पूर्णता और पुण्यफल की प्राप्ति के लिए विशेष महत्व रखता है।

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