सऊदी अरब ने भी अफगानिस्तान में बंद किया दूतावास, मुस्लिम देश भी क्यों छोड़ रहे हैं साथ

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नई दिल्ली : सऊदी अरब ने अफगानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर दिया है। इसके अलावा चेक गणराज्य की सरकारों ने भी तालिबान शासित अफगानिस्तान में अपने दूतावासों को बंद कर दिया है। कई देश तो पाकिस्तान या कतर से ही अफगानिस्तान का काम देख रहे हैं। इस कदम को अफागनिस्तान के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यह काबुल और अन्य देशों केराजनयिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है, टोलो न्यूज ने विश्लेषकों के अनुसार बताया है कि अफगानिस्तान में विदेशी राजनयिक मिशनों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। ऐसे में दूतावासों के बंद होने से अफगानिस्तान वैश्विक स्तर पर प्रभावित होगा। राजनीतिक विश्लेषक सैयद जावद सिजाद ने कहा,”एक देश के दूतावास को दूसरे देश में बंद करने का अर्थ है राजनयिक संबंधों को कम करना।”

इस बीच,एक पूर्व राजनयिक अजीज मारिज ने कहा,“एक प्रमुख इस्लामी शक्ति के रूप में काबुल में सऊदी अरब के दूतावास होने या काबुल से राजनयिक संबंध होने का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है;विशेष रूप से यह कई इस्लामिक देशों को तालिबान के साथ संबंधों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करता है।” टोलो न्यूज के मुताबिक, इस बीच तालिबान द्वारा नियुक्त एक प्रवक्ता ने एक स्पष्टीकरण जारी किया है और कहा है कि सऊदी दूतावास के कर्मचारियों ने प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए काबुल छोड़ा है और वे जल्द ही वापस आएंगे। तालिबानी प्रवक्ता ने कहा, “सऊदी अरब दूतावास को बंद करने की बात सही नहीं है। उनके राजनयिकों को सऊदी अरब में एक सप्ताह के प्रशिक्षण के लिए कहा गया है। वे इसीलिए गए हैं और जल्द वापस आएंगे। इस संबंध में अफवाहें सही नहीं हैं।”

विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान में विदेशी राजनयिक मिशनों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है और राजनयिक संबंधों का निलंबन अफगानिस्तान को प्रभावित कर सकता है। काबुल में दूतावास बंद करने की बड़ी वजह तालिबानी शासन और उसके क्रूर फरमान को माना जा रहा है, जिसकी वजह से हाल के दिनों में महिलाओं और लड़कियों पर कई तरह की पाबंदी लगाई गई है।

टोलो न्यूज के अनुसार, सबसे पहले चेक गणराज्य की सरकारों ने यह घोषणा की कि उसने अफगानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर दिया है। लेकिन इस्लामिक अमीरात को भले अभी तक किसी भी देश द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हुई है,उसके समेत चीन,रूसी, तुर्की, पाकिस्तान और ईरान के राजनयिकों की काबुल में सक्रिय उपस्थिति अभी भी बरकरार है।

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