तीन तलाक पर मोदी सरकार से जवाब तलब, सुप्रीम कोर्ट ने कानून के उल्लंघन पर दर्ज मुकदमों की पूछी संख्या
नई दिल्ली: आज यानी बुधवार 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 2019 के मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन कर पत्नी को ‘तीन बार तलाक’ कह कर संबंध विच्छेद करने के मामले में पुरुषों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों और आरोपपत्रों की संख्या के बारे में जानकारी देने को कहा। इस बाबत आज चीफ जस्टीस संजीव खन्ना और जस्टीस संजय कुमार की पीठ ने कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और अन्य पक्षों से याचिकाओं पर अपने लिखित अभ्यावेदन दाखिल करने को भी कहा।
इसके साथ ही चीफ जस्टीस संजीव खन्ना की बेंच ने याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई आगामी 17 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में निर्धारित की। कोझिकोड स्थित मुस्लिम संगठन ‘समस्त केरल जमीयत उल उलेमा’ इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता है। इस बाबत कोर्ट ने केंद्र और अन्य पक्षों से इन याचिकाओं पर अपने लिखित दलीलें दाखिल करने को भी कहा। बेंच ने आज कहा कि केंद्र सरकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 3 और 4 के तहत लंबित कुल FIR और आरोप पत्र की संख्या दाखिल करेगी। वहीं पक्षकार अपने तर्क के समर्थन में तीन पेज में लिखित प्रस्तुतियां भी उस दिन दाखिल करेंगे।
वहीं आज सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, ‘‘प्रतिवादी (केंद्र) मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा तीन और चार के तहत लंबित प्राथमिकियों और आरोप पत्रों की कुल संख्या की जानकारी दे। पक्षकार अपने तर्क के समर्थन में लिखित अभ्यावेदन भी दाखिल करें जो तीन पृष्ठों से अधिक नहीं हो।” गौरतलब है कि, कानून के तहत, ‘तीन तलाक’ को अवैध और अमान्य घोषित किया गया है और ऐसा करने पर पुरुष को तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने ‘तीन बार तलाक’ कह कर संबंध विच्छेद करने की प्रथा यानी तलाक-ए-बिद्दत को बीते 22 अगस्त 2017 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।