2018 के वसीयत संबंध से जुड़े अपने फैसले में संशोधन करेगा सुप्रीम कोर्ट, ‘सबको सम्मान के साथ…

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नई दिल्ली। मरणासन्न स्थिति में इलाज रोकने की वसीयत करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट अपने 2018 में जारी दिशानिर्देशों में संशोधन करने पर मंगलवार को सहमत हो गया। जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस सीटी रविकुमार की संविधान पीठ ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इलाज रोकने का विकल्प चुनने वाले गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए संबंधित कानून बनाने में विधायिका के पास कहीं ज्यादा कौशल और जानकारी के स्त्रोत हैं।

पीठ ने कहा कि वह खुद को इलाज रोकने की वसीयत करने संबंधी जारी दिशानिर्देशों में थोड़े संशोधनों तक सीमित रखेगा, अन्यथा यह 2018 के फैसले पर पुनर्विचार हो जाएगा। शीर्ष कोर्ट के प्रभावी आदेश की वजह से इलाज रोकने की वसीयत कराने वालों को काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 के अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि गरिमा के साथ मरना उन लोगों का अधिकार है, जो गंभीर रूप से बीमार हैं और जीवित वसीयत बना चुके हैं।

वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने बताया कि पहले मेडिकल बोर्ड घोषणा करता है कि मरीज की स्थिति में सुधार की गुंजाइश नहीं है, फिर जिलाधिकारी स्वतंत्र बोर्ड से राय लेता है। फिर मामला न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के पास जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि दो गवाहों की उपस्थिति में वसीयत बने और न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रक्रिया से हटाया जाए।

सुनवाई के दौरान प्रख्यात एस्ट्रोफिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग और फार्मूला वन रेसर माइकल शूमाकर का भी जिक्र आया। जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा, ‘अगर आप स्टीफन हॉकिंग का जीवन देखें तो शुरुआती वर्षों में ही एक भविष्यवाणी थी। हॉकिंग एएलएस नामक बीमारी से पीड़ित थे और 14 मार्च, 2018 को उनकी मृत्यु हो गई।

इसी दौरान दातार ने कहा कि वह एक ऐसा मामला जानते हैं जिसमें एक व्यक्ति 21 वर्ष बाद स्वस्थ हो गया। उन्होंने कहा, ‘जैसे माइकल शूमाकर जो अभी भी कोमा में है, हमें नहीं पता क्या होगा कि किसी स्टेम सेल की मदद से उन्हें पुन: ठीक किया जा सकेगा।

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