ट्रेन के ड्राइवर को क्यों मिलता लोहे का छल्ला? ना मिले तो रुक जाती है रेल, आखिर क्या है

0 80

नई दिल्ली. ट्रेन में सफर के दौरान अक्सर यात्रियों को रेलवे से जुड़े नियम-कायदे या पुरानी रवायतें देखने को मिलती है. आपने देखा होगा जब भी ट्रेन स्टेशन पर आती है तो एक रेलवेकर्मी प्लेटफॉर्म पर खड़ा होकर रेल के ड्राइवर को लोहे की रिंग सौंपता है. कई लोग सोचते हैं कि आखिर ये क्या चीज होती है और किस काम आती है. हम आपको बता दें कि यह टोकन एक्सचेंज सिस्टम है. हालांकि, इसका चलन अब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है लेकिन देश के कई हिस्सों में आज भी इस पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है.

चूंकि आप जान गए हैं कि ट्रेन के ड्राइवर को दिए जाने वाला यह लोहे का छल्ला, टोकन एक्सचेंज सिस्टम कहलाता है. आइये अब आपको विस्तार से बताते हैं कि आखिर ये किस काम आता है और रेलवे में इसकी शुरुआत कब से हुई थी.

ट्रेनों के सुरक्षित और बेहतर परिचालन के लिए टोकन एक्सचेंज सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. यह तकनीक अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है. दरअसल पहले रेल में ट्रैक सर्किट नहीं हुआ करते थे. ऐसे में टोकन एक्सचेंज सिस्टम के जरिए ही ट्रेन सुरक्षित तरीके से यात्रा पूरी करके स्टेशन पर पहुंचती थी.

वर्षों पहले रेलवे के पास आज की तरह एडवांस तकनीक नहीं थी इसलिए कई तरीकों के जरिए सुरक्षित परिचालन सुनिश्चित किया जाता था. शुरुआत में सिर्फ सिंगल और छोटा ट्रैक हुआ करते थे और दोनों ओर से आने वाली गाड़ियों एक ही ट्रैक पर चलाई जाती थी. ऐसी स्थिति में ट्रेनों की टक्कर की घटनाओं को रोकने के लिए टोकन एक्सचेंज सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था.

टोकन एक्सचेंज सिस्टम एक स्टील की रिंग होती है, जिसे स्टेशन मास्टर, लोको पायलट को देता है. ड्राइवर को यह टोकन मिलने इस बात का संकेत है कि अगले स्टेशन तक लाइन क्लियर है और आप आगे बढ़ सकते हैं. लोको पायलट अगले स्टेशन पर पहुंचने पर इस टोकन वहां जमा कर देता है और वहां से दूसरा टोकन लेकर आगे बढ़ता है. सिंगल लाइन के लिए आमतौर पर एक टोकन प्रणाली का उपयोग किया जाता है क्योंकि डबल लाइन की तुलना में सिगनलर या ट्रेन क्रू द्वारा गलती किए जाने की स्थिति में टकराव का अधिक जोखिम होता है.

लोको पालयट को मिलने वाली इस स्टील रिंग में एक बॉल है, जिसे रेलवे की भाषा में टेबलेट कहा जाता है. इस बॉल को स्टेशन पर लगे ‘नेल बॉल मशीन’ में डाला जाता है. स्टेशन मास्टर ट्रेन ड्राइवर से लिए बॉल को मशीन में डालने के बाद अगले स्टेशन तक के लिए रूट को क्लियर घोषित करता है. हालांकि, अब टोकन एक्सचेंज सिस्टम की जगह ‘ट्रैक सर्किट’ का इस्तेमाल किया जा रहा है.

 

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.