Rajasthan : अनुकंपा नियुक्ति पर हाईकोर्ट का अहम फैसला, नौकरी देने में बेटा और बेटी में नहीं किया जा सकता भेदभाव

राजस्थान हाईकोर्ट ने अनुकंपा नौकरी के एक मामले में कहा कि मृतक माता-पिता के आश्रित के तौर पर नौकरी देने में बेटा या बेटी के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है, यह संविधान के आर्टिकल 14,15 व 16 का उल्लंघन है.

0 452

राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan high court) ने अनुकंपा नियुक्ति (compassionate appointment) से जुड़े एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मृतक माता-पिता के आश्रित के तौर पर नौकरी देने में बेटा या बेटी के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अब यह मानसिकता बदलने का समय आ गआ है कि शादी के बाद बेटी अपने पिता के बजाय पति के घर की हो जाती है. किसी भी मामले में शादीशुदा बेटे व बेटी में भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

बता दें कि हाईकोर्ट में जैसलमेर (jaisalmer ) की रहने वाली एक युवती ने अपने पिता की मौत के बाद उनके स्थान पर जोधपुर डिस्कॉम (jodhpur discom) में नौकरी नहीं दिए जाने के बाद याचिका दायर की थी जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणियां की. वहीं हाईकोर्ट ने जोधपुर डिस्कॉम को युवती को 3 महीने के अंदर पिता की जगह नौकरी देने का आदेश दिए हैं.

बेटी होने पर खारिज हो गया था नौकरी का आवेदन

जैसलमेर निवासी शोभा देवी कोर्ट में दायर की गई याचिका में बताया कि उनके पिता गणपत सिंह जोधपुर डिस्कॉम में लाइनमैन के पद पर नौकरी करते थे. बीते 5 नवंबर 2016 को उनका निधन हो गया जिसके बाद उनके पीछे परिवार में पत्नी शांति देवी व बेटी शोभा बचे हैं.

याचिका में कहा गया कि उनकी पत्नी शांति देवी की तबीयत ठीक नहीं रहती है और वह नौकरी करने में असमर्थ है ऐसे में उनकी जगह उनकी शादीशुदा बेटी को आश्रित कोटे से नौकरी दी जाए. वहीं जोधपुर डिस्कॉम ने शादीशुदा बेटी को नौकरी नहीं देने की बात कहकर आवेदन खारिज कर दिया था.

शादीशुदा व अविवाहित बेटे-बेटियों के बीच नहीं हो भेदभाव : हाईकोर्ट

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश पुष्पेन्द्र सिंह भाटी ने कहा कि शादीशुदा व अविवाहित बेटे-बेटियों के बीच किसी भी तरह से भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और यह भेदभाव संविधान के आर्टिकल 14,15 व 16 का उल्लंघन है.

न्यायाधीश भाटी ने आगे कहा कि बूढ़े माता-पिता की जिम्मेदारी बेटे व बेटी की एक समान ही होती है ऐसे में उनके शादीशुदा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. बता दें कि याचिका में यह भी कहा गया कि राज्य सरकार के सेवा नियमों के मुताबिक अगर किसी मृतक आश्रित के परिवार में सिर्फ बेटी ही नौकरी के लायक हो तो उसे नियुक्ति दी जाएगी.

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.