यूपी में चुनाव चिन्ह ‘हैंडपंप’ को खोने से रालोद को पहचान खत्म होने का डर, यहां पढ़ें

0 160

लखनऊ । उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल के लिए राज्य पार्टी का दर्जा गंवाना इतिहास को दोहराने जैसा है। 1999 में एक गैर-मान्यता प्राप्त, पंजीकृत पार्टी होने से लेकर 2009 में पांच लोकसभा सांसद, दो बार के केंद्रीय मंत्री (2001 और 2011), यूपी में 14 विधायक और छह मंत्री (2003-2007) और अब एक गैर-मान्यता प्राप्त की स्थिति में पंजीकृत पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का राजनीतिक सफर पूरा हो चुका है।

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में रालोद से राज्य/क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया है। दरअसल, विधानसभा चुनाव में कुल मतदान का आवश्यक 6 प्रतिशत मत प्राप्त करना होता है, जिसमें पार्टी विफल रही। चुनाव आयोग के इस फैसले से पार्टी को जोर का झटका लगा, खासकर ऐसे समय में जब पार्टी जयंत चौधरी के नेतृत्व में खुद को फिर से खड़ा करना चाहती है।

पार्टी ने 2022 के यूपी चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर आठ सीटों पर जीत हासिल की। 2020 में अजीत सिंह के निधन के बाद, उनके बेटे जयंत चौधरी ने पार्टी की बागडोर संभाली और रालोद के पुनरुत्थान का मतलब उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बहुत कुछ था। राज्य की पार्टी का दर्जा खोने से रालोद की संभावनाओं पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इनके चुनाव चिन्ह ‘हैंडपंप’ को खोने से इनकी पहचान खत्म हो सकती है।

जयंत चौधरी पहले ही राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) से कह चुके हैं कि यूपी में होने जा रहे शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में सभी सीटों पर रालोद के चुनाव चिन्ह ‘हैंडपंप’ को केवल रालोद उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया जाए। रालोद प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि पार्टी ने औपचारिक रूप से राज्य चुनाव आयोग के समक्ष अपना मामला रखा था, जिसमें पार्टी प्रमुख जयंत चौधरी द्वारा वांछित कार्य करने का आग्रह किया गया था।

उन्होंने कहा, किसी भी मामले में, एसईसी ने कोई समीक्षा नहीं की है, इसलिए हमें ‘हैंडपंप’ चुनाव चिन्ह जारी रखने को मिलेगा। हमें उम्मीद है कि एसईसी पार्टी की स्थिति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखेगी, खासकर जब चुनाव अधिसूचना पहले ही जारी की जा चुकी है।

राज्य चुनाव आयोग के अधिकारी एस. के. सिंह ने कहा कि ईसी और एसईसी दो अलग-अलग निकाय हैं जिनके नियम अलग-अलग हैं और रालोद को राज्य स्तर की पार्टी के रूप में मान्यता देने का चुनाव आयोग का फैसला जरूरी नहीं कि निकाय चुनावों में उस पर लागू हो। रालोद के लिए अपने चुनाव चिन्ह को बनाए रखना अपने राज्य की पार्टी का दर्जा बरकरार रखने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘हैंडपंप’ अब पार्टी का पर्याय बन गया है और चूंकि हम अनिवार्य रूप से एक किसान-आधारित पार्टी हैं, इसलिए हैंडपंप हमारे लिए मायने रखता है। एक पूर्व विधायक ने इस बात पर सहमति जताई कि नया चुनाव चिन्ह 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही पार्टी के लिए नई चुनौतियां साबित होगा। उन्होंने कहा, इसका मतलब एक नए प्रतीक को लोकप्रिय बनाने का एक कठिन प्रयास होगा। हम अपील कर रहे हैं कि हमें ‘हैंडपंप’ चिन्ह को जारी रखने को मिले, जिसकी हमारे मतदाताओं के बीच व्यापक स्वीकार्यता है।

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया Vnation के Facebook पेज को LikeTwitter पर Follow करना न भूलें...
Leave A Reply

Your email address will not be published.