चीन की इस लैब में हैं जानलेवा वायरस, इस तरह काम करते हैं वैज्ञानिक, जानकर कांप जाएगी रूह

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बीजिंग. चीन में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट BF.7 से हाहाकार मचा हुआ है। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि देश के अंदर सिर्फ 20 दिन में 25 करोड़ लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। इस बात का खुलासा सरकारी दस्तावेजों से हुआ है। रेडियो फ्री एशिया की तरफ से सोशल मीडिया पर मिले दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि महीने के पहले सप्ताह में जीरो-कोविड पॉलिसी’ में छूट गी गई थी जिसके बाद चीन में हालात बेहद खराब हो गए हैं। सिर्फ 20 दिन में ही चीन में करीब 250 मिलियन लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं।

तबाही मचाने वाला कोरोना वायरस चीन से ही पूरी दुनिया में फैला था। दावा किया जाता है कि चीन के वुहान लैब में कोरोना वायरस को बनाया गया था जहां से यह जानलेवा वायरस पूरी दुनिया में फैला। अमेरिकी वैज्ञानिक एंड्रू हफ ने भी अपनी पुस्तक ‘द ट्रुथ अबाउट वुहान’ में वुहान लैब में कोरोना वायरस के बनाने का दावा किया है। हमेशा से चीन पर कोरोना को लेकर झूठ बोलने का आरोप लगता रहा है। अब कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ने चीन में कोहराम मचा रखा है। इस वायरस की वजह से मौजूदा वक्त में चीन में तबाही मची हुई है। आइए हम जानते हैं चीन की खतरनाक वुहान लैब और इसमें वैज्ञानिक कैसे काम कारते हैं?

साल 2004 में चीन ने इस खतरनाक लैब को तैयार किया था जिसका नाम वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी है। 44 मिलियन डॉलर की लागत से बने इस लैब के निर्माण में फ्रेंच सरकार ने मदद की थी। चीन के वुहान शहर के पास पहाड़ियों के बीच इस लैब को बनाया गया है। इस लैब के अंदर किसी भी बाहरी व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं है। इस लैब की सुरक्षा बेहद सख्त है। ज्यादातर लैब में उन पैथोजन को रखा जाता है जिनका इलाज नहीं मिल पाया है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि दवाईयां बनाई जा सके हैं। लेकिन चीन के वुहान लैब में कथित तौर पर जानलेवा पैथोजन पर प्रयोग किया जाता है।

अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की तरफ साल 2020 में आरोप लगाया गया था कि चीन की सरकार ने जैविक हथियार बनाने के लिए चमगादड़ों से ऐसे वायरस निकाले थे। चीन ने दुनिया में तबाही मचाने के लिए यह काम किया था। इसी दिसंबर में अमेरिकी वैज्ञानिक एंड्रू हफ की किताब’द ट्रुथ अबाउट वुहान’ में बताया गया है कि लैब में कोरोना वायरस बना था जो लापरवाही से लीक हुआ।

सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने लैब को चार कैटेगरी में बांटा गया है। यह इसपर निर्भर है कि लैब में सेफ्टी स्टैंडर्ड और वहां पर कौन सी चीज रखी जा सकती है। लेवल 1 लैब में कम खतरनाक पैथोजन होते हैं। इसमें काम करने वाले वैज्ञानिकों को फेस शील्ड पहनना पड़ता है। इसके बाद निकलते समय हाथ धोना और कपड़ा बदलना होता है। लैब के अंदर किट उतारकर खाने की अनुमति नहीं होती है। दूसरे स्तर की लैब को बीएसएल-2 कहा जाता है। यहां अधिक खतरनाक पैथोजन होते हैं और अधिक सावधानी बरतनी होती है। इन सभी का इलाज हो सकता है।

लेवल 3 में बहुत खतरनाक पैथोजन या अज्ञात पैथोजन पर भी काम किया जाता है। इसमें वैज्ञानिकों को फेस शील्ड से लेकर बॉडी और शू कवर पहनना अनिवार्य है। लेवल 4 लैब में सबसे खतरनाक पैथोजन होते हैं। इनसे जानलेवा बीमारियां हो सकती है जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं हो।

लेवल 4 लैब में सेफ्टी प्रोटोकॉल बेहद सख्त होता है। इस जगह पर ऐसी व्यस्था होती है कि किसी हादसे के होने पर इसका असर आबादी तक न हो। यहां पर काम करने वाले वैज्ञानिकों को पूरा समय डेल्टा सूट पहनना पड़ता है। इस पीपीई सूट को ऐसे बनाया जाता है कि बेहद संक्रामक पैथोजन भी शरीर तक नहीं पहुंच पाएं। लैब या कैंपस से बाहर आने के बाद ही डेल्टा सूट को उतारा जा सकता है।

डेल्टा सूट पहनने की वजह से जल्द ही शरीर डिहाइड्रेड हो जाता है। इसके साथ ही शुरुआत में वैज्ञानिकों को चक्कर भी आने लगता है। लैब से बाहर आने के बाद डिकंटेमिनेशन प्रोसेस के तहत खास केमिकल बाथ लेना पड़ता है। इस प्रोसेस में माइक्रो-केम-प्लस डिटर्जेंट को पूरे शरीर पर छिड़का जाता है। यह एक तरह से साबुन होता है जिससे प्रोटीन की लेयर में छिपे वायरस खत्म हो जाते हैं। इस बाथ को 6 मिनट तक लेना होता है। इस दौरान बाथरूम का दरवाजा बंद कर दिया जाता है और समय पूरा होने के बाद ही खुलता है।

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